पिछले कुछ महीनों से देश के हर शहर को “स्मार्ट सिटी” बनाने की बातें हो रही
हैं. मीडिया से पता चलता है की इसके लिए इंडिया के शहरों में एक कांटेस्ट हुआ था
जिसमेसे आखिर १०० शहर चुने गए. इनको अब स्मार्ट सिटी बनाया जायेगा.
एक सवाल मन में आते हैं: स्मार्ट सिटी है क्या? और जवाब मिलता है: सरकार ने
कुछ पैमाने रखे हैं जिनके आधार पर सिटी को डेवेलोप किया जायेगा.
मान लिया. हम खुशनसीब हैं की हमारा जालंधर भी स्मार्ट सिटी कांटेस्ट में
क्वालीफाई हो गया है और अब स्मार्ट सिटी बनेगा.
मैं अभी हाल में जालंधर में था. स्मार्ट सिटी की सबसे पहली पहचान होती है
सड़कें. मैंने पूरा जालंधर घूमा पर एक भी सड़क ऐसी नहीं मिली जो “स्मार्ट” दिखती हो.
बल्कि कुछ सड़के जैसे अर्बन एस्टेट की जिन्हें ७-८ साल पहले स्मार्ट कहा जा सकता था
आज कहीं से स्मार्ट नहीं दिखती. ट्रैफिक का तो क्या कहना. कुछ ना कहो तो ही अच्छा.
इस हालात में आदमी घर से निकलने के बाद घर पहुंचेगा की नहीं, पता नहीं. और हम बात
कर रहे हैं स्मार्ट सिटी की.
विशेष रूप से
विकलांग लोगों का तो छोड़ ही दो, किसी भी सरकारी दफ्तर में बजुर्गों के लिया भी कोई
सुविधा नहीं है. पैदल चलना मतलब मौत से मुलाकात. ऐसे में स्मार्ट सिटी तो दूर,
जालंधर को हम सिटी ही बना लें तो गनीमत.
चलिए कुछ देर
के लिए मां लेते हैं की इस बार तो स्मार्ट सिटी बना के ही दम लेंगे. तो स्मार्ट
सिटी के लिए हर नागरिक से राय लेनी है, और फिर एक प्लान बनेगा. इस पे कुछ काम हो
रहा है. नहीं.
स्मार्ट सिटी
कुछ नहीं, बस एक नया तरीका है भ्रष्टाचार का. अगर हम जालंधर निवासी अपने शहर को
स्मार्ट बनाना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले सत्ता में बैठे इन लोगों से सवाल करना
होगा जो चुनाव पैसे बनाने के लिए लड़ते हैं न की शहर की भलाई के लिए.
पर पंजाब के
हालात में किसी पॉलिटिशियन से सवाल करना शायद आसन नहीं. इसलिये स्मार्ट छोडिये,
जालंधर को सिटी बनाने की ही भगवान से दुआ मांगिये.
उत्तमं कुमार
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