Friday, December 25, 2015

Review: Voices of the Silent Creek



Author:  Vikkas Arun Pareek
Pages: 210
Format : ebook (Also available in paperback)










Review:

Storyline of the book is very Strong. After the 2012 Nirbhaya incident, this topic has caught attention of many writers and Vikkas Arun Pareek is one of them.
But there is one thing which differentiate Vikkas from others here, he is not trying to start a fight with his writing. In his own words:

“This book will not change the world. It will not even change a community, a city and I do not mind that. If along with all the voices a voice is added and collectively sent to the society to improve itself, set a benchmark and then achieve it or at least try to achieve it. If it even helps or changes one person life, my goals and efforts to write this book will be met.”

This is really unique. I have seen many authors who are championing the cause and claiming that there writing will definitely change the thinking of Society. I salute Vikkas to be honest and humble.

Story revolves around the lives of four women who are attached to a common thread and suffer and fight against the atrocities of the Society to ultimately emerge champions.

Bhano, Shanti, Mano and Arti: they represent different sections of society, they represent different thoughts of society. They all suffer in their own way. Shanti loses her life but in the end Bhano, Mano and Arti are able to get justice and start a new life. A happy ending.

I am not touching on the story deliberately as I want each of you to read it and experience it yourself without knowing what is going to happen next.

All in all a very Strong Novel. It gives us an insight in what is happening on the other side of Grass.

Few points of improvement are:
1.     Language: I have noticed and discussed it earlier too. No harm in writing in English by translating your thoughts but then one must read enough before writing scenes like Sexual Harassment. The quality of writing takes a hit if we don’t use write words and phrases. If we just translate word to word the meaning is lost, the impact is lost. Here is where editing helps.
2.     Editing: This book has been edited as claimed in the beginning. But editing proves to be the weakest link of the book. The language, words, grammar, phrases, description of scenes all deserve a lot of editing. 



I suggest the author to get the editing done again and republish it. The book has a scope to be best seller. 

To Buy the book, click below.

राजू की गायें



जुलाई की गरम दोपहर में राजू स्कूल से लोट रहा था | उसके कदम तेज चल रहे थे , शायद सूरज की तापस से | पर मन बेचैन था | मास्टर जी के शब्द उसके कानों में गूँज रहे थे |
“राजू पिछले चार महीने से तुमने फीस नहीं दी है | इस बार अगर तुम नहीं दे पाए तो में भी कुछ नहीं कर पाऊँगा |”
राजू कक्षा छठी का एक मेधावी छात्र था | पूरा स्कूल उस पर मान करता था |
पिछली बार जब वो कक्षा में प्रथम आया था तो प्रधानाचार्य ने उसकी मां को बुला कर उसकी तारीफ की थी | राजू को उनके शब्द अब भी याद थे,
“एक दिन हमारा राजू पूरे गॉव का नाम रोशन करेगा|”
उस दिन राजू पूरी रात नहीं सोया था , बस यही सोचता रहा की वो इस बात को सच साबित करेगा, इसके लिए वो दिन रात मेहनत करेगा |”
राजू के पिता की मृत्यु हो चुकी थी | तब राजू सिर्फ ३ साल का था | घर में उसकी एक बड़ी बहिन शमा और एक छोटा भाई कालू था | उसकी मां शारदा लोगों के घर में काम करती और रात को कपडे सिलती | इस तरह से वो अपने बच्चों को एक अच्छी ज़िन्दगी देने की कोशिश कर रही थी |
पर उसकी कमाई से तीनो की पदाई नहीं हो पा रही थी | इसलिये पहले बहन को हटा कर मां ने अपने साथ काम पे लगा लिया | अब दोनों मिल कर लोगों के घर का काम करती| इससे काम ज़ल्दी होने लगा तो दो घर और ले लिए |
कमाई बड़ी तो खर्चे भी बदने लगे | शारदा ने कालू को भी स्कूल से हटा लिया | वो अब सारा दिन गली में खेलता रहता | पर सबको राजू से बड़ी उमीदें थी |
सब सही चल रहा था के अचानक एक दिन शारदा जब काम से घर आय तो देखा कालू का बदन भठी की तरह ताप रहा था | वो उसे हकीम साहेब के पास ले गयी | उन्होंने बताया कि ज्यादा ठण्ड की वजह से उसे बुखार हो गया है और उसे शहर ले जाना चाहिए |
यह सुन कर शारदा गिरते गिरते बची | पर उसने खुद को संभाला | कालू को घर छोड़ वो उन घरों में गयी जहाँ काम करती थी और उनसे कुछ पैसे उधार ले आयी|
कालू अस्पताल में दस दिन रहा पर भगवान की कृपा से वो ठीक हो कर घर आ गया | इस बीमारी ने शारदा की कमर तोड़ दी | एक तो वोह दस दिन तक काम पे नहीं जा पाई ऊपर से सब से उधार ले लिया |
इस कारण पिछले तीन महीने से राजू की स्कूल की फीस भी न दे पायी|
पर आज मास्टर जी ने राजू को चेतावनी दे दी थी |
राजू घर पहुंचा | अपना बस्ता रखा और श्रीदेवी की तरफ गया | श्रीदेवी उनकी गायें थी | कई दिन से इसे भी पूरा घास नहीं मिल पा रहा था | इस वजह से इसने ढूध देना बंद कर दिया था और बहुत कमजोर भी हो गयी थी | उसके बाप की यह आखरी निशानी थी !
अचानक राजू जैसे नींद से उठा | अपनी फीस की चिंता में वो भूल ही गया था | पारो ने उसे बताया था कि पास के गाँव में एक अंकल रहते हैं | वो गायों की रक्षा करने के लिए प्रसिद्ध हैं | राजू ने उसी वक़त सोच लिया था की वोह उनसे मिलेगा और उसे यकीन था की वोह श्रीदेवी के चारे के लिए मदद ज़रूर करेंगे |
कालू को बता कर वोह उस गाँव की और चल पड़ा | शारदा अभी काम से नहीं आयी थी|
राजू अपनी उमीदो के संग उस गाँव में पहुच गया| पूछने पर लोगों ने उसे उस आदमी का घर बता दिया| काफी मशहूर था वो| राजू को पुरी उम्मीद थी की वो श्रीदेवी के लिए कुछ करेगा|
पर उससे मिलने के बाद राजू को निराशा ही हाथ लगी| उसने यह कहकर भेज दिया की अभी तो वो कुछ नहीं कर सकता पर कोशिश करेगा| राजू बहुत उदास हुआ|
राजू घर आया| तब तक शारदा भी आ चुकी थी| उसने सबको खाना खिलाया और खुद कपडे सिलने के लिए बैठ गयी|
“मां” राजू ने कहा “मास्टर जी ने फीस के लिए कहा है और कह रहे थे की अगर इस बार नहीं दी तो वोह मुझे स्कूल से निकाल देंगे|”
शारदा का गला भर गया| “मैं कुछ करती हूँ बेटा|” कहकर वो फिर कपडे सिलने लगी|
राजू दुसरे कोने में जा कर पड़ने लगा| घर में एक ही कमरा था| यही किचन और यही सोने का कमरा| सब काम यही करने पड़ते थे| राजू को अब मशीन के शोर में पड़ने की आदत हो गयी थी|
राजू पड़ते पड़ते सो गया| शारदा ने उठके उसकी किताबें उठाई और उस को चादर दे दी|
राजू सुबह स्कूल गया| मास्टर जी ने फिर फीस की बात की| राजू ने दो दिन का समय माँगा|
“राजू अगर दो दिन में फीस नहीं आयी तो फिर स्कूल मत आना|”
आज राजू बहुत ज्यादा उदास था| उसे अन्दर से अच्छा महसूस नहीं हो रहा था| फीस एक वजह थी पर कुछ और भी था जो उसे विचलित कर रहा था|
राजू घर पहुंचा और रोज की तरह श्रीदेवी से मिलने गया| पर श्रीदेवी नीचे गिरी हुए थी औत बिलकुल हिल नहीं रही थी|
राजू भाग के डॉक्टर साहेब को बुला लाया| उन्होंने श्रीदेवी को देख के बोला की वो मर चुकी थी|
राजू रोने लग पड़ा| डॉक्टर साहेब चले गए| राजू वहीँ बैठे रोता रहा|
शाम को शारदा आयी तो वोह भी बहुत दुखी हुई| पर उसने किसी तरह राजू को चुप कराया|
खाने के बाद शारदा राजू से बोली “बेटा श्रीदेवी को मैंने बचों की तरह पाला था पर शायद उसने हमारे साथ इतने ही दिन रहना था| तुम जाओ हामिद चचा को बोलो वो उसे ले जायेंगे| नहीं तो सुबह तक वास आने लगेगी|
और हाँ हामिद चाचा जो पैसे देंगे उससे तुम्हारी फीस भी दे देंगे| अब भगवान के आगे किसका जोर है|
राजू हामिद चाचा को बोलने चला गया| वोह उनके घर से २ गली छोड़ के रहते थे|
हामिद चाचा का लड़का आसिफ राजू के साथ ही पड़ता था| आते वक़्त हामिद चाचा उसे भी साथ ले आये|
वोह साथ में अपना हाथ ठेला लेकर राजू के घर पहुंचे| राजू, कालू और आसिफ की मदद से उन्होंने श्रीदेवी को ठेले पर दाल लिया| दरवाजे से निकलते हुए श्रीदेवी की टांग पे थोडा ज़ख्म हो गया| पर श्रीदेवी तो अब मर चुकी थी| राजू अब भी रुक रुक कर रो रहा था|
हामिद चाचा ने शारदा को १००० रूपए दिए और हाथ ठेला लेकर चल दिए|
अपने दुःख के बीच राजू को इस बात की तसल्ली थी की अब उसे स्कूल से निकाला नहीं जायेगा|
तभी राजू को गली से शोर की आवाज़ आयी| लोग जोर जोर से गालिया दे रहे थे और हर हर महादेव के नारे लगा रहे थे| बीच बीच में जब नारों की आवाज़ कुछ कम होती तो किसी के बुरी तरह चिलाने की आवाज़ आती|
राजू के साथ शारदा ने भी यह आवाज़ सुनी और वो भाग कर गली की उस तरफ गए|
वहां पहुँच कर उनके पाँव तले से ज़मीं खिसक गयी| हामिद चाचा और आसिफ लहू में भीगे हुए सडक पे गिरे थे और उनके चारो तरफ लोग जोर जोर से चिला रहे थे|
“इस सूअर ने हमारी माता को मारा है| इसको इसकी सजा मिलनी चाहिए|”
और फिर लोग उनको टांगो लाठियों और पत्थरों से मारने लगते|
“इसको इसकी सजा दो|”
आवाज़ की दिशा में देखा तो यह वही गौ रक्षा वाले अंकल थे| जिनसे कुछ दिन पहले राजू श्रीदेवी के चारे के लिए मदद लेने गया था पर उन्होंने उसे सिर्फ भरोसा देकर भेज दिया था| आज वो अंकल अपनी गौ माता की मौत का बदला ले रहे थे|
शारदा जोर से चिलाए”यह क्या कर रहे हैं आप?”
“इसने हमारी मां को मारा है| यह चोरी से इस गएँ को मार के रात के अँधेरे में ले जा रहा था| हमारे भाईओं ने देख कर मुझे बुला लिया| अब यह नहीं बचेगा|”
एक और टांग हामिद चाचा के जमा दी उसने पर इस बार वोह चिलाये नहीं, न ही हिले|
“पागल हो आप लोग, यह मेरी श्रीदेवी है जो आज दोपहर मर गयी थी| मैंने ही हामिद को बुला कर इसे ले जाने को कहा था|” और शारदा गुस्से से रोने लगी|
“अच्छा, भाई हमें माफ़ करना|” उस अंकल ने बोला|
पर हामिद चाचा हिले नहीं| वो मर चुके थे|
तब तक पुलिस भी आ गयी| किसी ने उन्हें फ़ोन कर दिया था|
हामिद चाचा मर चुके थे पर आसिफ शायद अभी जिंदा था| उसे हॉस्पिटल पहुंचा दिया गया|
भीड़ छट गयी| ज़्यादातर चेहरे राजू पहचानता नहीं था|
वो तो बस यह सोच रहा था कि जिस गाये को अंकल मां कह रहे थे उसी मां के लिए वोह उनसे एक दिन पहले मिला था और अगर उस समय उन्होंने कुछ मदद की होती तो शायद आज उनकी मां जिंदा होती|

और हामिद चाचा भी.....................

Friday, December 4, 2015

स्मार्ट सिटी जालंधर -Smart City Jalandhar

पिछले कुछ महीनों से देश के हर शहर को “स्मार्ट सिटी” बनाने की बातें हो रही हैं. मीडिया से पता चलता है की इसके लिए इंडिया के शहरों में एक कांटेस्ट हुआ था जिसमेसे आखिर १०० शहर चुने गए. इनको अब स्मार्ट सिटी बनाया जायेगा.
एक सवाल मन में आते हैं: स्मार्ट सिटी है क्या? और जवाब मिलता है: सरकार ने कुछ पैमाने रखे हैं जिनके आधार पर सिटी को डेवेलोप किया जायेगा.
मान लिया. हम खुशनसीब हैं की हमारा जालंधर भी स्मार्ट सिटी कांटेस्ट में क्वालीफाई हो गया है और अब स्मार्ट सिटी बनेगा.
मैं अभी हाल में जालंधर में था. स्मार्ट सिटी की सबसे पहली पहचान होती है सड़कें. मैंने पूरा जालंधर घूमा पर एक भी सड़क ऐसी नहीं मिली जो “स्मार्ट” दिखती हो. बल्कि कुछ सड़के जैसे अर्बन एस्टेट की जिन्हें ७-८ साल पहले स्मार्ट कहा जा सकता था आज कहीं से स्मार्ट नहीं दिखती. ट्रैफिक का तो क्या कहना. कुछ ना कहो तो ही अच्छा. इस हालात में आदमी घर से निकलने के बाद घर पहुंचेगा की नहीं, पता नहीं. और हम बात कर रहे हैं स्मार्ट सिटी की.
विशेष रूप से विकलांग लोगों का तो छोड़ ही दो, किसी भी सरकारी दफ्तर में बजुर्गों के लिया भी कोई सुविधा नहीं है. पैदल चलना मतलब मौत से मुलाकात. ऐसे में स्मार्ट सिटी तो दूर, जालंधर को हम सिटी ही बना लें तो गनीमत.
चलिए कुछ देर के लिए मां लेते हैं की इस बार तो स्मार्ट सिटी बना के ही दम लेंगे. तो स्मार्ट सिटी के लिए हर नागरिक से राय लेनी है, और फिर एक प्लान बनेगा. इस पे कुछ काम हो रहा है. नहीं.
स्मार्ट सिटी कुछ नहीं, बस एक नया तरीका है भ्रष्टाचार का. अगर हम जालंधर निवासी अपने शहर को स्मार्ट बनाना चाहते हैं तो हमें सबसे पहले सत्ता में बैठे इन लोगों से सवाल करना होगा जो चुनाव पैसे बनाने के लिए लड़ते हैं न की शहर की भलाई के लिए.
पर पंजाब के हालात में किसी पॉलिटिशियन से सवाल करना शायद आसन नहीं. इसलिये स्मार्ट छोडिये, जालंधर को सिटी बनाने की ही भगवान से दुआ मांगिये.


                 उत्तमं कुमार


 

Thursday, December 3, 2015

Road Rage: My Poem

Poem was first Published in "The Melody of Life"


Road Rage

He walked towards his house,
Flying in the air!
Dying to meet his mother
And tell her about the affair.
Today was his lucky day,
Job and life- partner by the side.
He wanted to kiss his mom
And say: leave the worries aside.
I got today whatever you’d dreamt,
A good job and a would-be wife.
Leave all what you keep doing all day,
Sun will shine and you make hay.
Bought few sweets on the way,
To celebrate in his style.

He was flying in the air!
Walking in full speed,
With all his might.
But-
He is lying in a pool of blood..
With sweets on the side;
Just been hit by a bike!
People standing around,
Trying to fetch some help.
But-
His last murmur could be heard,
Don’t worry mom,
I will be fine…..I w i l l be f i n………

Uttam Kumar