Thursday, September 10, 2015

मेरे अन्नदाता को एक दिल से अपील


यह पत्र लिखते हुए मेरा दिल खून के आंसू रो रहा है और मुझे पक्का यकीन है कि पड़ने के बाद आप मेरी पीड़ा और लाचारगी को महसूस कर पाएंगे | 
जब मैं इस दुनिया में आया तो मेरी मां ने मुझे जन्म दिया पर ज़िन्दगी मुझे आपने (किसान ने) दी | किसान मेरा अन्दाता ही नहीं ज़िन्दगीदाता भी है | आज जब मैं उसे आत्महत्या करते देखता हूँ तौ मुझे समझ नहीं आता कि यह क्या हो रहा है, जहाँ ऋण देने वाला अपनी ज़िन्दगी की बली दे रहा है और कृत्घन ऋणी अपने घर में चैन से सो रहा है? कहाँ का इन्साफ है यह ?
मेरा किसान इतना कमज़ोर नहीं कि कुछ तकलीफों की वजह से ज़िन्दगी से हार जाये | बात कुछ पैसो की नहीं | कुछ तो कारण है जिसे हम समझ नहीं पा रहे यां समझना नहीं चाहते |
इंसान को तकलीफे और मुश्किलें इतना नहीं मारती जितनी अपनों की बेरुखी | मेरे ज़िन्दगीदाता हम सब की बेरुखी आपको मार रही है | हम सब आपके कातिल हैं |
मैं महसूस कर सकता हूँ जब किसी एक लड़की के क़त्ल की कहानी हमारे समाज के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो बनिस्बत की हजारों किसानो की आत्महत्या के तो आप कैसा ठगा हुआ महसूस करते हैं | जब देश आपके बारे में सोचने के बजाये यह सोचता है कि किसी रईस उद्योगपति के ऋण को कैसे माफ़ किया जाये ताकि वो चुनाव लड़ने के लिए पैसे दे सके | मेरे अन्दाता मैं तौ आपसे माफ़ी भी नहीं मांग सकता |
मैं क्या करूँ जिससे मैं आपको जिंदा रख सकूं | आपको यह यकीन दिला सकूं कि आपके दर्द को मैं महसूस कर पा रहा हूँ ! मेरे अन्नदाता मैं आपका ऋणी हूँ | अपना ऋण कैसे चुकाऊ| कुछ पैसों की मदद करके मैं अपना यह क़र्ज़ नहीं उतार सकता | मेरा क़र्ज़ तो तब उतरेगा जब आप अपनी जान देने का सोचेंगे भी नहीं |
मेरा मस्तिष्क इस वक़्त खाली है | मुझे कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा | मैं आपको मरता नहीं देख सकता | मेरी नाकामी की सजा आप और आपका परिवार क्यूँ भुगतें |
अभी मेरे पास आपकी समस्या का कोई हल नहीं है | इस पत्र से आपसे बस एक ही गुजारिश करना चाहता हूँ कि हमें आप छे महीने का समय दीजिये | इन छे महीनो में हम देश के सब लोग जो आपके करजदार हैं मिल के एक रास्ता ढूंढेंगे कि आपका क़र्ज़ हम कैसे उतार सकते हैं | तब तक आप हमपे विश्वास करिए और कृपा करके हमारे कुकर्मों की सजा खुद को मत दीजिये |
यह पत्र लिखते मेरा दिल लहू के आंसू रो रहा है | हमें बस एक मौका दीजिये |

आपका कृत्घन ऋणी

मेरी मेरे सब बुद्धिजीवी लोगों से प्राथना है की इस पत्र को ज्यादा से ज्यादा किसानो तक पहुचाएं | इसके साथ ही इस बात पे भी विचार करें कि हम ऐसा क्या कर सकते हैं जिससे हम अपने अन्नदाता को यह विश्वास दिला पायें कि हम उनके साथ हैं| उन्हें अपना जीवन ख़तम करने की ज़रुरत नहीं | अपने आस पास के गाँव की पंचायत से मिलकर ऐसे किसानो का पता लगाएँ जो आत्महत्या कर सकते है यां क़र्ज़ में डूबे हैं | उन्हें विश्वास दिलाये कि हम उनके साथ हैं | हर मुश्किल का हल पैसा नहीं होता , कभी कभी प्यार और हमदर्दी के दो शब्द भी ज़िन्दगी बचा देते हैं | आइए मिलकर इस समस्या का हल ढूंढें | सरकारें तो वोट ढूंढेंगी , हल नहीं | क्या हम अपने भाइयों को मरता छोड़ सकते हैं | आज जब खाना खाएं तो सोचें कि कहीं उसमे किसी किसान का खून तो नहीं है | 

5 comments:

  1. Death is difficult ,very difficult.have u watched it ? Except a human no other animal can commit a suicide just like reffered here " sarkar " is emotionless animals .

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  2. ये समस्या बहुत गंभीर है और इसका हल निकलना भी उतना ही मुश्किल. मुझे लगता है कि किसान गवर्नमेंट के ऋण की वजह से नहीं परन्तु लोकल सूदखोरों की वजह से कर रहे हैं आप ही बताओ, सर्कार का ऋण अगर नहीं दिया तो सर्कार क्या कर लेगी? कुछ नहीं. लेकिन लोकल साहूकार जिनके पास गरीब लोगों का सब कुछ गिरवी रखा होता है वो कभी माफ़ नहीं करता. उसको उनका सब कुछ चाहिए उनके ज़मीन, उनके गहने, उनके मेहनत और उनकी बहु-बेटियां भी. सरकार तो वैसे ही बदनाम हो रही है. मैं भी गाँव का रहने वाला हूँ. मैंने आज तक किसी सरकारी आदमी को किसी किसान से पैसे वसूलते नहीं देखा हाँ, वो सब जो मैंने ऊपर लिखा है वो ज़रूर देखा है.

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